वन उपवन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं । ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल दल । जन के काज विलम्ब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै। लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।जात पवनसुत बार न लाई॥ * कृपया अपने https://lukasjhzoc.blogzag.com/76659490/facts-about-panchmukhi-hanuman-revealed